मोंटेक सिंह अहलूवालिया का शौचालय. योजना आयोग भवन के दो शौचालयों को चमकाने पर ३५ लाख रूपये कर्च किये गए हैं. यह वही मोंटेक और उनका आयोग है जो कहता है कि जो २८ रुपये एक दिन में खर्च करता है, वह गरीब नहीं है. देश के गरीबों को लेकर अपराधिक और अमानवीय रवैया अपनाने वाला आयोग अपने शौचालय के सुन्दरीकरण पर जितना चाहे खर्च कर सकता है. सब कुछ 'बजट के भीतर' है.
जैसे ही यह खबर सामने आई कि योजना भवन के शौचालय के सुन्दरीकरण पर ३५ लाख खर्च हुए हैं, मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर चौतरफा हमले शुरू हो गए. जैसी कि उम्मीद थी, वे इस खर्च के बचाव में आये और पूरी तरह से यह स्पष्ट कर दिया कि देश की योजना बनाने वाला यह व्यक्ति देश को लेकर कितना असंवेदनशील है.
मोंटेक ने न केवल मीडिया के सामने धन के आपराधिक दुरुपयोग को उचित ठहराया बल्कि इसकी आलोचना करने के लिए मीडिया की चुटकी भी ली. फिजूलखर्च का विरोध उनके लिए दुर्भाग्यपूर्ण है और ३५ लाख ख़र्च करना जरूरत. यह योजना आयोग के उपाध्यक्ष की बेशर्मी और असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है. उनके इस काम की चारो तरफ से निंदा हुई है लेकिन उसका क्या लाभ. मोंटेक को तो इस बात का अहसास भी नहीं है कि एक गरीब देश में ऐसी फिजूलखर्ची उचित नहीं है. बल्कि उलटे वह इसे उचित ही ठहरा रहे हैं. कांग्रेस ने भी उनका बचाव करने से मन कर दिया है और इस बात को रखांकित किया है कि सार्वजनिक धन का ख़र्च इस तरह से उचित नहीं है.
मगर कांग्रेस की सीख का मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर क्या फर्क पड़ता है. वे प्रधानमंत्री के आदमी हैं और अमेरिका में उनके आका उन्हें भारत में जमाये रखना चाहते हैं. चाहे वे अपने शौचालय के लिए कितना भी धन क्यूँ न ख़र्च करें. वे कांग्रेस के नियंत्रण में नहीं हैं. वे वित्त मंत्री बन रहे थे, कांग्रेस ने रोक दिया, कांग्रेस बस इतना ही कर सकती थी. आने वाले चुनाओं में अकेले मोंटेक कांग्रेस पर भरी पड़ेंगे, और रुपये वाली करतूत कांग्रेस के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बनेगी.
अर्से से वे मनमोहन सिंह और अमेरिका के प्रिय है और मनमोहन तथा उनके आका अमेरिका ने मोटेंक को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना रखा है. आज भी मोटेंक बिना नागा किये अमेरिका जाते हैं. महीने में एक दो बार वे अमेरिका में ही पाये जाते हैं और न जाने क्या करके लौट आते हैं. फिर कांग्रेस में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह उल जुलूल हरकतें करनेवाले मोंटेक का कान पकड़कर उन्हें योजना आयोग का दरवाजा दिखा दे. न जाने कब से वे अपने मानसिक सोच (शौच) से पूरे देश को गंदा किये जा रहे हैं और हम हैं कि उनकी हर गंदगी अपने सिर माथे धरे घूम रहे हैं.
वैसे, राजनीतिक दल भले ही मोंटेक की आलोचना कर रहे हैं लेकिन इस देश का आम आदमी के मन में एक सवाल यह भी आ रहा है कि काश! पूरा देश मोंटेक का शौचालय हो जाता. आखिर में एक सवाल तो ज्यों का त्यों है कि अपने शरीर का मैला त्यागने के लिए मोंटेक ने ३५ लाख ख़र्च किया है, मन का मैल दूर करने के लिए कितना ख़र्च करेंगे?
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