Wednesday, October 17, 2012

जातिवाद की जकड़न

भले ही मेरी बात कटाक्ष से परिपूर्ण लगे मगर अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस और भाजपा के दामन को तार तार कर के जो २०१४ के चुनाव में अपनी पार्टी का  डंका बजाने की सोची है उसमें वे  पूरी  तरह विफल हो जायेंगे. उनकी पार्टी नयी नवेली दुल्हन है. अभी उन्हें ससुराल रूपी राजनीति में एडजस्ट करने में बहुत टाइम लगेगा...राजनीति एक दलदल है जिसमें जो डूबने की इच्छा रखता है, उसे अपने पूरे चरित्र को दाँव पर लगाना पड़ता है. भारत  भले ही औद्योगीकरण  की  ओर अग्रसर  है और यहाँ  की भी जनता पिज़्ज़ा-बर्गर खाने  लगी  है मगर अब भी जातिवाद, क्षेत्रवाद और न कितने वाद-विवाद  जनता की नसों में समाये हुए हैं ...ऐसे में २०१४ का चुनाव लड़ने और जीतने का सपना लिए अरविन्द केजरीवाल को भी उन्हीं उम्मीदवार को खड़ा करना पड़ेगा जो प्रदेश के जाति  के हिसाब से फिट बैठते हों , पर केजरीवाल की  बड़ी बड़ी बातें  सुनकर तो यह नहीं लगता कि  वह ऐसा करेंगे...चलिए देखते हैं उनकी हिम्मत रंग लाती भी है या नहीं...

Sunday, October 14, 2012

मलाला, हमें तुमपर नाज़ है.....


मलाला, इतनी कम उम्र में तुमने अब्बू से अच्छी और सच्ची तालीम हासिल की है ..विश्व का हर एक नागरिक तुम्हारी रिकवरी की दुआ कर रहा है. अच्छी शिक्षा इंसान को बेहतर बनाती है....भारत में वेदों, पुरानों,महाकाव्यों में असीम ज्ञान का भण्डार 
है, मगर हमारे पास उन्हें पढने के लिए वक़्त नहीं है...बचपन में स्कूल का टेंशन, कॉलेज में डिग्री का टेंशन और बाद में नौकरी, फिर शादी, फिर बच्चे.... फिर गृहस्थ जीवन के जाल में व्यस्त....

१२-१८ वर्ष इंसान के बहुत महत्वपूर्ण होते हैं ....इस समय दिमाग परिपक्व होने की तयारी में रहता है...इसी उम्र के पडाव पर यदि जीवन का सही मार्गदर्शन हो तो सम्पूर्ण जीवन की धारा ही अलग हो जाती है....हम औरों से अलग सोचने लगते हैं, जीवन का उद्देश्य बदल जाता है.....आज हमारे समाज में मलाला जैसी सोच की जरुरत है, कुछ करने का जज्बा, किसी और के लिए जीने का जज्बा......

अंशुमान तिवारी जी, अर्थशाश्त्र के अद्भुत ज्ञाता

कल ही अंशुमान  तिवारी जी, जो अर्थशाश्त्र के अद्भुत ज्ञाता हैं,  उनका लेख पढ़ रहा था. उन्होंने बहुत खूब कहा - "यदि दुनिया में चिंताओं को नापने का कोई ताजा सूचकांक बनाया जाए तो डगमगाता अमे‍रिका और डूबता यूरोप उसमें सबसे ऊपर नहीं होगा।  दुनिया तो अब थमते चीन को लेकर बेचैन है। ग्‍लो्बल ग्रोथ का यह टर्बोचार्ज्‍ड इंजन धीमा पड़ने लगा है। चीन अब केवल एक देश का ही नाम नही बलिक एक नए किस्‍म की ग्‍लोबल निर्भरता का नाम भी है। दुनिया की दूसरी सबसे बडी अर्थव्‍यवस्‍था की  फैक्ट्रियों में बंद मशीनों को देख कर ब्राजील, अफ्रीका और अमेरिका की खदानों से लेकर ताईवान व कोरिया के इलेक्‍ट्रानिक केंद्रो तक डर की लहर दौडने लगी है। चीन की ग्रोथ में गिरावट दुनिया की सबसे बड़ी बहुआयामी चुनौती है। सुस्‍त पडता चीन  विश्‍व की कई कंपनियों को दीवालिया कर देगा।"


आज उन्हें मैं एक पत्र लिख रहा हूँ :-

सर,
मैं आपके लेखों का नियमित पाठक हूँ. आपके आर्थिक लेखो में मेरी भरपूर जिज्ञासा रहती है. कुछ सवाल  हैं जो आपसे पूछने  हैं.
चीन अपने सस्ते लेबर के लिए जाने जाना वाला देश है. विश्व भर  की कई कम्पनियां चीन आकर अपने उत्पाद का उत्पादन करती हैं, भले ही उसमे लेबल लगा हो मैन्युफैक्चर्ड इन चाइना या मेड इन चाइना. खैर, मुझे बस आपसे ये जानना है कि प्रोडक्ट की विश्वसनीयता को हम कैसे  परखेंगे कि हमारे द्वारा ख़रीदा गया नोकिया मोबाइल सेट या अन्य प्रोडक्ट में क्या अविश्वसनीय और गैर टिकाऊ चीनी कल-पुर्जे मिले रहेते हैं.
आपके उत्तर का इंतज़ार रहेगा
आपका आभारी,
संसार लोचन