Thursday, November 22, 2012

कसाब को फाँसी



पापी, क्रूर और हत्यारे कसाब  को कल फाँसी दे दी गयी। फाँसी तो उसे पहले ही दे देनी चाहिए थी। पर जिस तरह भारतीय संविधान लचीला है, ठीक उसी तरह हमारे नेताओं के मस्तिष्क भी। मेरे अनुसार निर्णय लेने में देरी नहीं करनी चाहिए। जितनी देरी होगी उतनी जटिलताएं भी सामने आएँगी। 

हम यदि स्वयं भी अपने जीवन का उदाहरण लें तो कई बार ऐसा लगता है कि यदि मैं उसी समय एक्शन (कार्रवाई) ले लेता तो आज ये दिन देखना नहीं पड़ता। कहा भी गया है - 

काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब।

एक बार की बात है। कर्ण अपने दरबार में बैठे हुए थे। उसी समय उनके दरबार में एक याचक आया। याचक ने अपने हाथ फैलाकर कर्ण से दान मांगा। कर्ण उस समय कुछ काम कर रहे थे। याचक की आवाज सुनते ही कर्ण ने अपना बायां हाथ उठाया और उससे अपने गले का हार निकालकर याचक को दे दिया।

कर्ण के इस कृत्य को एक दरबारी देख रहा था। उसने आपत्ति जताते हुए कहा-‘‘महाराज, अपराध क्षमा हो। आप जानते ही हैं कि बाएं हाथ से दान नहीं दिया जाना चाहिए। जानते हुए भी आपने यह अधर्म क्यों किया?’’ कर्ण ने उत्तर दिया-‘‘याचक ने जब मुझसे दान मांगा, उस समय मेरे आसपास मेरे गले के हार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। उस समय मेरा दायां हाथ व्यस्त था। हो सकता था कि यदि मैं दाएं हाथ को खाली करके दान देने की सोचता तो इतने समय में ही मेरा मन बदल जाता और मैं अपना हार उतारकर उस याचक को नहीं दे पाता। कौन जाने कि पल भर में क्या हो सकता है। इसलिए मैंने अपने बाएं हाथ से ही अपने हार का दान कर दिया।’’आप सोच सकते हैं कि जो व्यक्ति एक-एक पल को इतना महत्त्व देता हो, उसके लिए जीवन में ऊँचाइयाँ छू जाना कोई कठिन नहीं रह जाता।