Wednesday, November 28, 2012

FDI in India, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश


देश में इन दिनों सरकार के एक फैसले की वजह से करोड़ों खुदरा व्यापारियों और किसानों की सांस अटकी हुई है. सरकार का खुदरा व्यापार में एफडीआई की मंजूरी देने से व्यापार जगत में भारी उठापटक का दौर शुरू हो गया है. कोई कहता है एफडीआई आम खुदरा व्यापारियों के लिए जोखिम भरा है तो कुछ की राय में एफडीआई से देश को बहुत ज्यादा फायदा होगा. आइए क्रमानुसार एफडीआई के बारे में हर बात जानें. इस अंक में हम एफडीआई और इसके नुकसानों के बारे में जानेंगे.


क्या है एफडीआई: What is FDI

एफडीआई के नफा-नुकसान को समझने से पहले जरूरी है कि हम यह समझें की एफडीआई होती क्या है? एफडीआई का अर्थ होता है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश. किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया प्रत्यक्ष विदेशी  प्रत्यक्ष विदेशी कहलाता है जिसे एफडीआई (Foreign Direct Investment)भी कहते हैं.

ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के प्रबंधन में कुछ हिस्सा हासिल हो जाता है जिसमें उसका पैसा लगता है.

सरकार का एफडीआई पर फैसला

हाल ही में सरकार ने जिन क्षेत्रों में एफडीआई यानि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी है उनमें शामिल हैं:


  • बहुब्रांड खुदरा कारोबार में 51 फीसदी एफडीआई
  • घरेलू विमानन कम्पनियों में विदेशी विमानन कम्पनियों की अधिकतम 49 फीसदी एफडीआई को इजाजत दे दी.
  • प्रसारण सेवा उद्योग की विभिन्न गतिविधियों में विदेशी कंपनियों को 74 प्रतिशत तक हिस्सेदारी की अनुमति


क्या होगा एफडीआई का स्वरूप

सबसे पहले तो यह जान लेना जरूरी है कि बहुब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई तभी लागू होगा जब राज्य सरकार इसे मंजूर करेगा. राज्य सरकार की मंजूरी के बाद ही विदेशी कंपनियों को मल्टी ब्रांड रिटेल स्टोर खोलने की अनुमति मिलेगी. ऐसे स्टोर 10 लाख से ज्यादा आबादी वालेशहरों में ही खोले जा सकेंगे और विदेशी कंपनियों को कम से कम 10 करोड़ डॉलर का निवेश करना होगा.

एफडीआई के नुकसान

आइए अब जानें एफडीआई यानि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से क्या नुकसान होंगे. इस क्रम में शुरुआत करते हैं कृषि के क्षेत्र से.

कृषि के क्षेत्र में एफडीआई से नुकसान

जो लोग एफडीआई का समर्थन कर रहे हैं उनके अनुसार एफडीआई लागू होने से किसानों को फायदा होगा. उनके अनुसार कंपनियां सीधे किसानों से उत्पाद खरीदेंगी और बिचौलिए खत्म हो जाएंगे. बिचौलिए खत्म होने से किसानों को बहुत ज्यादा फायदा होगा. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एफडीआई के नुकसान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. सप्लाई चेन में विदेशी कंपनियों के दबदबे से किसानों को पूरी कीमत मिलने की राह में दुविधा होगी. क्वालिटी चेक और सर्टिफिकेशन के नाम पर उनका जमकर शोषण किया जाएगा.

जिस सप्लाई चेन के बनने की बात सरकार खुद कर रही है वो काम भी उसी का है.अगर सरकार सप्लाई चेन दुरस्त कर दे तो किसानों को इसका फायदा बिना एफडीआईके ही मिलने लगेगा.
एफडीआई से कैसे बेरोजगारी बढ़ेगी?

सरकार का कहना है कि एफडीआई आने से देश में कई रिटेल शॉप खुलेंगे जो देश में लाखों रोजगार पैदा करेंगे. लेकिन क्या यह रोजगार उन बेरोजगारों का पेट भर पाएगी जो देश के करोड़ों खुदरा व्यापारियों के बेरोजगार होने से होगी? देश में इस समय करोड़ों खुदरा व्यापारी हैं और इस बात की संभावना अधिक है कि एफडीआई आने से इन खुदरा व्यापारियों का पतन हो जाएगा.

जानकारों का मानना है कि जिन नौकरियों की बात सरकार कर रही है वह है सेल्समैन और सेल्सगर्ल की. अगर एफडीआई लागू होता है तो भारत सेल्समैन और सेल्सगर्ल का देश बनकर रह जाएगा.

एफडीआई सीमित कर देता है विकल्प

जब भी कोई विदेशी कंपनी किसी दूसरे देश के खुदरा व्यापार में आती है और वहां अपना दबदबा बनाती है तो वह वहां साधनों का विकल्प बहुत कम कर देती है. अब आप अमेरिका या चीन जाकर देखिए यहां आपको खुदरा सामान की गिनी-चुनी दुकानें मिलेंगी. जानकरों का मानना है कि एफडीआई के आने से उपभोक्ताओं के विकल्प सीमित हो जाते हैं.


भारत जैसे विविधता भरे बाजार में उपभोक्ताओं के सामने असीमित विकल्प होते हैं. बाजार में घुसने के साथ ही बड़ी रिटेल कंपनियों का पहला बड़ा लक्ष्य प्रतिस्पर्धा को खत्म करना और अपना दबदबा कायम करना होगा जिससे हो सकता है उपभोक्ताओं को बहुत ज्यादा नुकसान हो.

एफडीआई के आने से बढ़ेंगे दाम

खुदरा व्यापार में एफडीआई का विरोध करने वालों ने वालमार्ट को निशाना बनाते हुए कहा है किसप्लायरों को कम से कम कीमत पर सामने बेचने को मजबूर करने से लेकर उत्पादों की कीमतों में इजाफा और उपभोक्ता के विकल्प सीमित करने की रणनीति की वजह से ही वालमार्ट ने आज यह कामयाबी हासिल की है. वालमार्ट सस्ते से सस्ता सामान बचने का दावा करती है. लेकिन इसका लक्ष्य उपभोक्ताओं को सस्ता सामान दिलाना नहीं बल्कि अपने शेयरधारकों का मुनाफा बढ़ाना है.

यह तो है खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से होने वाले नुकसानों के बारे में एक संक्षिप्त विवरण. अगले अंक में हम एफडीआई के तथाकथित फायदों के बारे में भी चर्चा करेंगे और जानेंगे कि एफडीआई के सिक्के का दूसरा पहलू कितना सुखद और कितना सपनीला है?

नियम 184 और नियम 193 ( Rule. 184 & Rule. 193)


खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मुद्दे पर संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष और सरकार में तनातनी का मौहौल है और नियम 184 और नियम 193 का जिक्र बार बार आ रहा है। आईये संक्षेप में जाने ये नियम क्या हैं?

भारतीय सविंधान के लागू होने के के बाद 17 अप्रैल, 1952 को प्रथम लोकसभा के गठन के साथ साथ उसके सञ्चालन की प्रक्रिया के नियम भी तैयार कर लिए गए जो मुख्य रूप से संविधान सभा के लिए बनी नियमावली पर आधारित थी। उसी नियमावली के अंतर्गत नियम 184 और नियम 193 आते हैं जो आजकल खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मुद्दे को लेकर चर्चा में हैं . नियम 184 के अंतर्गत मत विभाजन का प्रावधान है और नियम 193 में ऐसा नहीं है। नियम 184 के तहत संसद में चर्चा के बाद वोटिंग होती है. अगर सरकार के पास पूरे नंबर ना हों तब भी सरकार तो नहीं गिरती लेकिन उसकी किरकिरी होने का पूरा खतरा रहता है. कोई भी प्रस्ताव नियम 184 या नियम 194 में से किसके तहत होगा ये निश्चय करने का अधिकार सिर्फ लोकसभा के अध्यक्ष को है .

अब रही नेताओं के जलेबी जैसी गोल-गोल टेढ़ी-मेढ़ी माँगें तो उसे भी जान लिया जाए। विपक्ष का मानना है कि ऎसी स्थिति में बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के सरकार के एकतरफा निर्णय के बारे में सदन की भावना जानने का एकमात्र रास्ता यही बचता है कि इस मुद्दे पर चर्चा के बाद सदन में मत विभाजन भी कराया जाए। उनके अनुसार यह आवश्यक हो गया है कि वे अपनी बात उठाएं और इसके लिए मतदान आवश्यक है।

जबकि कांग्रेस ऐसा नहीं चाहती कि कोई वोटिंग हो क्योंकि वह एफडीआई के पक्ष में है। इसिलए बार-बार नियम 193 की वह गुहार लगा रही थी। 


You may have heard in the news that (FDI in multi-brand retail) the government may agree to a discussion under Rule 184, which entails voting. Earlier, the government was asking for Rule. 193. Let us know, what are these rules and where they came from.

The Constituent Assembly (Legislative) Rules of Procedure and Conduct of Business in force immediately before the commencement of the Constitution of India were modified and adopted by the Speaker of Lok Sabha in exercise of the powers conferred on him by article 118(2) of the Constitution and published under the title "Rules of Procedure and Conduct of Business in the House of the People" in the Gazette of India Extraordinary dated the 17th April, 1952.

Those Rules were amended by the Speaker from time to time on the recommendations of the Rules Committee of the House until September, 1954.

Discussions on matter of public interest 184. ** Save in so far as is otherwise provided in the Constitution or in these rules, no discussion of a matter of general public interest shall take place except on a motion made with the consent of the Speaker.**

Notice for raising discussions193. **Any member desirous of raising discussion on a matter of urgent public importance may give notice in writing to the Secretary-General specifying clearly and precisely the matter to be raised:
There shall be no formal motion before the House nor voting. 

That is why the UPA government (which is in favour of FDI in multi-brand retail) is on the side of having a discussion in the Lok Sabha under Rule 193, which does not entail voting.

Tuesday, November 27, 2012

मुद्रास्फीति

अर्थशास्त्र में शब्दों को बहुत भारी भरकम बना दिया जाता है। मुद्रास्फीति को ही ले लीजिये ..लगता है कोई दीवाली के मँहगे पटाखे का नाम हो। इसे सरल रूप में लीजिये। मुद्रास्फीति का अर्थ मँहगाई है ..बस और कुछ नहीं। 

मुझे याद है जब मै ग्रेजुएशन की क्लास अटेंड कर रहा था तो टीचर जी ने मुझसे पूछा की मुद्रा स्फीति क्या है तो मैंने फटाक से जवाब दिया "सर मँहगाई "...वह  चुप हो गए और मैं भी उनके पीले पड़े चेहरे को देखता ही रह गया . शायद वो कुछ और ही सुनना चाह रहे थे।

मुद्रा की क्रय शक्ति में होने वाले ह्रास को मुद्रा स्फीति कहते हैं . अब इसे सरल उदाहरण द्वारा समझे  . यदि आप बाजार में दाल लेने जाते हैं और आपके पास 60 रुपए  हैं। आपका मानना था कि 60 रुपए  में आपको 1 किलो दाल मिल जाएगी  क्यूंकि पिछले महिने आपने 60 रुपए किलो  ही दाल ली था . पर बाजार जाकर पता चला कि दाल 90 रुपए किलो हो गयी है। इसका मतलब आप अब एक किलो दाल नहीं खरीद पायेंगे। मुद्रा की क्रय शक्ति घट गयी। अब तो 30 रुपए  और भी जोड़ने पड़ेंगे दाल लेने के लिए।

मुद्रा की क्रय शक्ति का यही ह्रास मुद्रास्फीति कहलाता है। 



क्या कारण है कि सरकार रोज़-रोज़ मुद्रास्फीति में कमी की घोषणाएं करती रहती है फिर भी ये महंगाई है कि न तो रुकने का नाम ले रही है और न ही कम होने का. क्या ये सरकार की, चुनावों के चलते, आंकडों से बुनी जादूगरी है या विपक्ष सही कह रहा है. आईये इस मुद्रास्फीति के अर्थशाश्त्र को साधारण शब्दों में समझने का प्रयास करें.

वास्तव में, मुद्रास्फीति की दर घटने का अर्थ मँहगाई कम होने से इतना सीधा भी नहीं है (जितना कि हम समझते हैं) क्योंकि यह दर फिछले सप्ताह इत्यादि, की मुद्रास्फीति की दर के सन्दर्भ में होती है न कि महंगाई के सन्दर्भ में. इसलिए पहले ये जान लें कि मुद्रास्फीति की दर और महंगाई मैं सीधा सम्बन्ध नहीं होता है, अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है. इसीलिए, यूं भी कहा जा सकता है कि

(1) मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि माने मँहगाई में वृद्धि,
(2) मँहगाई में वृद्धि माने मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि
(3) मँहगाई में कमी माने मुद्रा स्फीति की दर में कमी,
(4) लेकिन, मुद्रास्फीति की दर में कमी का मतलब मँहगाई में कमी ज़रूरी नहीं.

उदारहरण के रूप में इसे यूं देखा जा सकता है:-

१.१.२००८ किसी वस्तु की कीमत रु.१००/-
१.२.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १०% (↑) = ११०/-
१.३.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १०% (↑) = १२१/-
१.४.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १५% (↑)= १३९.१५
१.५.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर ०२% (दर में कमी, पिछले महीने तुलना में) = १४१.९३
इसी तरह आगे भी.....

ऊपर के उदाहरण से देखा जा सकता है कि मुद्रास्फीति की दर 15% से घट कर 2% (यानि 13% की कमी) होने पर भी वस्तु की कीमत में रु. 2.78 कि बढोतरी हुई. यानि मँहगाई नहीं घटी. यही अर्थशास्त्र का खेल है जिसे वोटों के खेल में भी बदला जाता रहता है ठीक वैसे ही, जैसे कभी ये कहा गया था कि नदी पर बाँध बनाकर पानी में से बिजली निकाल ली गयी और इस तरह से गरीब किसानों को धोखे से बिना बिजली वाला पानी दिया गया.